ये
जो कट्टरपंथी इस्लामिस्ट हम जैसों को गाली दे कर कहते हैं कि "मुसलमानों का
नाम रख कर इस्लाम को ये लोग बदनाम करते हैं, इस्लाम
नहीं मानना है तो मुसलमान नाम क्यूं है?"
उनसे
मैं ये कहना चाहता हूँ कि "भाई, कोई
किसी से पूछकर कहीं नहीं पैदा होता है.. और ये ज़रूरी है क्या कि अगर कोई किसी
मुसलमान घर में पैदा हो गया है तो उसे इस्लाम मानना ही है? ये
कौन सा रूल हैं भाई? आपके पिता डॉक्टर हैं तो आप इंजीनियर
क्यूं बन जाते हैं? आप भी डॉक्टर ही बनिये फिर.. तो जैसे
आपको हक़ है अपना कैरियर चुनने का वैसे आपको हक़ है अपना मज़हब चुनने का.. ताबिश
सिद्दिक़ी हिन्दू भी बन सकता है, मुसलमान भी, बुद्धिस्ट भी और सिख भी.. और पैगम्बर का नाम मुहम्मद उनके मूर्तिपूजक दादा
ने मुहम्मद रखा था.. ये मुसलमान नाम नहीं था, ये बस अरबी नाम
था.. उनके साथ के सारे लोग अरबी नाम वाले मूर्तिपूजक थे.. अरबी नाम का मुसलमान
होने से कोई संबंध नहीं है.. चालीस साल बाद मुहम्मद साहब ने स्वयं को मुसलमान
घोषित किया, मगर नाम नहीं बदला.. वही मूर्तिपूजकों के दिये
नाम से वो जाने गए"
मैं
नहीं समझता कि मज़हब कोई ऐसी चीज़ है जो विरासत में हमें मिलनी चाहिए.. जब आप बड़े
हों तो आपको उसे चुनने का हक़ मिलना चाहिए.. आपके पास ऑप्शन होने चाहिए कि आप कोई
मज़हब मानना चाहते हैं या फिर नास्तिक रहना चाहते हैं.. आराम से सब स्टडी कीजिये और
फिर चुनिए.. और इसके लिए कोई ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं
कट्टरपंथी
जो इतना आग बबूला रहते हैं हम जैसे मुसलमान घर मे पैदा हुवे लोगों पर,वो सिर्फ़ इसी लिए इतना गुस्सा रहते हैं क्यूंकि इनकी आदत ख़राब हो चुकी
है.. ये इस बात को मान कर बैठे हैं कि दुनिया मे किसी भी मुसलमान के घर पैदा हुआ
बच्चा इनके क़ौम की जागीर है और उसे "मुसलमान" ही होना चाहिए.. क्यूं भाई?
क्यूं होना चाहिए?
और
हां.. आख़िरी बात.. कुर्बानी इस पृथ्वी की धार्मिक कुप्रथाओं में सबसे बड़ी कुप्रथा
है।
–
ताबिश सिद्दिकी
तस्वीर
प्रतीकात्मक 'द इंडिपेंडेंट' से साभार।